मां तुम बेकार का खाना बनाती हो
रोज रोज वही
मैं ऊब गई हूँ
नहीं बनाना है तो बोल दो
मैं बाहर खा लूंगी
बेटी की यह बात सुनकर मां की आँख भर आई
सोचने लगी
पैरों मे दर्द
फिर भी किचन मे खड़ी रहती हूं
कम से कम यह खुश रहे
जाने दो
छोड़ दो
करने दो
अब नहीं बनाऊंगी
खाए चाहे भाड़ मे जाए
रोज सुबह -शाम किचकिच
एक तो करो भी
लाटसाहिबा के बात भी सुनो
फोन की घंटी घनघना उठी
आवाज आई
क्या बनाया है??
उत्तर देने से पहले ही बोल उठी
कल सुबह छोले -पुरी और पुलाव बनाना
आपके स्टाइल मे
मस्त लगता है
सड़ेला मत बनाना
थोड़ी देर पहले वाले आंसू गायब हो गए थे
फिर से नये आ गए
चेहरे पर मुस्कान आ गई
गुस्सा काफूर हो गया
क्योंकि यह मां बच्चे के बीच की बात है
हर घर-घर की बात है
इसे हर कोई नहीं समझ सकता
बस मां ही समझ सकती है
पैर का दर्द गायब
पैर किचन की ओर
शाम की तैयारी करनी है
सोचना है
उसकी मनपसंद बनाना है
डर नहीं यह प्रेम है
कैसे छोड़ दूं
उसकी आवाज से ही पेट भर जाता है
जब मम्मी कहती है
तब ह्रदय के तार झंकृत हो उठते हैं
मां हूँ बच्चे ही दूनिया
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