आज बैठे बैठे मन भटक गया
जाकर पीछे अटक गया
लगा कोई बुला रहा
आॅखमिचौली खेल रहा
वह यौवन था
उसका भी एक दौर था
घंटों बतियाने
खिलखिलाते
फिल्म देखने जाते
मित्रों की टोली में घूमते
समुन्दर किनारे बैठे रहते
लहरों से अठखेलियां करते
न जाने कितने समय शीशे के सामने खडे रहते
अपने को निहारा करते
सपने बुनते और देखते
दुनिया कितनी हसीन और रंगीन लगती थी
कविता और शायरी करते
उपन्यासों और कहानियों में खोए रहते
प्रेम और रोमांस की बातें छुटकारे ले लेकर सुनते
कल्पना बुनते रहते
यथार्थ से कही दूर
सब कुछ नजरअंदाज कर
हर बात को टाल कर
किसी की परवाह नहीं
समाज की तो ऐसी कि तैसी
वह सोच थी जवानी की
तब जवानी खिलखिलाती थी
मनमौजी थी
आज भी हम तो वही है
पर यौवन साथ नहीं है
उसके बिना तो वह बात कहाॅ
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