खुश रहना भी एक कला है
जिसे यह आ गई
उसे जीना आ गया
ऐसा नहीं कि जीवन मे उसने जो चाहा
मिल गया
जीवन किसी के इच्छानुसार नहीं
अपनी मर्जी से चलता है
हाँ यह हमारी मर्जी है
हम खुश रहे
हम दुखी रहे
हम रोते रहे
दुखों की गठरी को ढोते रहे
इंसान की फितरत है
वह कभी संतुष्ट नहीं हो सकता
एक के बाद एक इच्छा
सिर उठाए खड़ी ही रहती है
समस्या आती ही रहती है
समाधान भी होता रहता है
ऐसा नहीं कि हर दिन एक समान
ऊपर -नीचे तो होता ही रहता है
जीवन है
जीना भी है
तो क्यों न खुश रहा जाय
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