Tuesday, 11 June 2019

क्या कर रहे चौकीदार

आज सत्ता पर बैठे हैं चौकीदार
फिर भी मासूम बेटियां है लाचार
चीरहरण हो रहा द्रोपदी का
आज भीष्म और द्रोण है असहाय
पांडव का तो सर नीचा हुआ ही है
शर्मसार हुए हैं
पर कुछ कर नहीं पा रहे
मजबूर बन गए हैं
धृतराष्ट्र के तो पहले से ही पट्टी बंधी है मोह की
बीच बीच में एकाध कर्ण आ जाते हैं
नयी परिभाषा बना देते हैं बलात्कार की
नारी को भोग्या बना दिया है
महान संस्कृति है हमारी
अपनी बहू - बेटियों को तो परदे में रखना
और दूसरों को हवस का साधन
यह पौरूष वाली मनोवृत्ति
जब तक रहेगी
द्रोपदी का चीरहरण होता ही रहेगा
पग पग पर दुर्योधन और दुश्शासन घात लगाकर बैठे हैं
शह देने के लिए कर्ण भी है
कहाँ कहाँ कृष्ण जाएँगे
घर में पडोस मे बाहर
कहीं भी तो महफ़ूज नहीं है बेटियां

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