बरसात आई
इंतजार खत्म
गरमी से निजात
आई पर अकेले नहीं आई
अपने साथ आंधी - तूफान भी लेकर आई
मौसम सुहावना हुआ ही था
लोग तृप्त हो ही रहे थे
कि उसने विकराल रूप धारण कर लिया
पेड पौधे गिरने लगे
छप्पर उडने लगे
लोग घरों में दूबकने लगे
बिजली चमक रही थी
बादल गरज रहे थे
पानी धो धो बरस रहा था
रात भर तांडव नृत्य करती रही
सुबह होते ही शांत
मानो कुछ हुआ ही नहीं
सब फिर वैसे ही
शाम होते होते भूल भी गए
यह तो हमेशा होता है
फिर भी हम इंतजार करते हैं
यह सबको जीवन भी देती है
उस एवज में कुछ लेती भी है
हर चीज की कीमत तो चुकानी ही पड़ती है
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