आज भी उस दुर्घटना की याद आती है
दिल कांप उठता है
1993 की बात है ,मैं घर से पाठशाला जाने के लिए निकली थी
रास्ता पार कर अंदर गली मे प्रवेश कर बाए तरफ से चल रही थी
साथ में एक छात्रा भी थी
ज्यादा गाडी नहीं आती है वहाँ
काफी सुनसान रहता है पाठशाला के ही समय चहल-पहल रहती है
अचानक एक गाडी आई उसने उस बच्ची को टक्कर मारा उसके बाद मुझे
मैं गिर पडी ,गाडी ऊपर चढ रही थी
सोच रही थी अब तो मर रही हूँ
बाहर से आवाज सुनाई दे रही थी
बाई मेली औरत मर गईं
डिवाइडर से टकराकर गाडी रूक गई
मैं बीच में फंसी थी
मारूती थी लाल रंग की
मुझे गाडी उडाकर निकाला गया
पास में ही खडी पुलिस वैन मे डालकर नायर अस्पताल ले जाया गया
ज्यादा चोट नहीं आई थी मुक्कामार था यानि अंदरूनी चोट
पडोस दिवार से लगी पोलिस चौकी
पांच सौ रुपये फाइन लगा कर छोड़ दिया
गाडी एक छात्रा की माँ ही चला रही थी
पति देव स्नान कर रहे थे
बच्ची को परीक्षा के लिए देरी हो रही थी
नौसिखिये औरत ने यह दुर्घटना की
उस दिन दो लोगों की जान बचो थी
ईश्वर की कृपा से
पर ऐसे लोगों को कडा से कडा दंड दिया जाना चाहिए
अभी कल ही जो मुंबई की दुर्घटना हुई है
बस स्टैंड पर खडे परिवार की
नवजवान बेटा मारा गया है
अमीरजादे ऐसे ही दुर्घटना करते हैं
बाद में छूट जाते हैं
इनके हौसले बुलंद होते हैं
पर किसी का आशियाना तबाह हो जाता है
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