बारिश की बूँदें गिर रही
आसमान से तो सब एक साथ चली
बादल ने सबको आगोश में लिया
सब एक साथ गिरी
बिना डरे
बिना हिचके
पता नहीं कहाँ गिरे
सबकी नियति अलग अलग
पर उन्हें आने में डर नहीं लगा
कब तक बैठी रहती बादल के आगोश मे
कदम तो आगे उठाना ही है
चलना तो पडेगा ही
देखा जाएगा
कहाँ पहुँचते हैं
वह तो निश्चित नहीं
निश्चित तो जीवन भी नहीं
फिर क्यों न चुनौती स्वीकार करें
बैठ रहना जीवन नहीं
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