स्मृतियो के दंश में जकडी जिंदगी
मुक्त हो ही नहीं पाती
कब होगी
जब विस्तृति आ घेरेगी
शरीर जर्जर हो जाएगा तब
जब विस्मृत होने लगता है
अचानक फिर कुछ ऐसा हो जाता है
सारी यादें ताजा हो जाती है
जैसे पानी की बूंदे
सूखे पौधे पर पड जाती है
वह फिर लहलहा उठता है
हरा भरा हो जाता है
वही हाल स्मृतियों का है
समय समय पर दंश देती रहती है
हम जकडे रहते हैं
यह हमे छोड़ता ही नहीं
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