दरवाजा खुला है
आस लगाये बैठे हैं कोई आएगा
कोई झाँकेगा
कोई देख कर बोलेगा
पर सब व्यर्थ
यहाँ सबके दरवाजे बंद
सब अपने अपने में मस्त
किसी को किसी से लेना देना नहीं
हम चाहते हैं मेलजोल बढाना
वे चाहते हैं दूरी बनाना
प्राइवेसी में खलल पडता है
किसी की दखलंदाजी पसंद नहीं
चेहरा देखना भी गंवारा नहीं
अब अकेला रहना चाहता है हर कोई
संबंधों में सीलन आ गई है
गर्माहट रही नहीं
सब दरवाजे के पीछे अपनी अपनी दुनिया में मस्त
यही है आज हमारे महानगर की जिंदगी
पडोसी से कोई सरोकार नहीं
अब किसी के घर से भोजन की खुशबू नहीं आती
अब तो कौए भी नहीं आते
न किसी के आने का संदेश देते
जिंदगी सिकुड़ गई है
इस बंद दरवाजे के पीछे
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