नदी ने उफान मारा
बाढ आई आफत लाई
तिनका तिनका जोड़ आशियाना खडा किया था
सब एक झटके से ढह गया
सारी जिंदगी की पूंजी लगी थी
पेट काट काटकर ,जोड जोड कर बनाया था
जिंदगी बीत गई
किराए के मकान में
डरते डरते रहते
हर साल दो साल में मकान बदलना पडता
मन में इच्छा थी
अपना भी एक घर होगा
सपने संजोए थे
बडे मन से बनवाया था
सुकून की सांस ली थी
अब तो आराम से रहेगे
मनमानी करेंगे
हमारा अपना जो है
इसमें किसी की दखलंदाजी नहीं
मन माफिक सजाया था
रंग-रोगन करवाया था
न जाने कौन सी कयामत की रात आई
सोते सोते ही उठ बैठे
पानी का सैलाब आ रहा था
जान बचाकर भागे
सामने की पहाड़ी पर शरण ली
घर ताश के पत्तों की तरह ढह रहा था
हम लाचार खडे तमाशा देख रहे थे
तब तो किराए का था
आज सडक पर आ गए
अब तो वह हिम्मत भी नहीं बची
प्रकृति ने वह मार मारा
देखते देखते हम बेघरबार हो गए
जहाँ से चले थे
फिर वापस वही खडे थे
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