Thursday, 12 September 2019

मत नाच रे मोर

मोर नाच रहा था
मदमस्त था
हर अदा निराली थी
लोग देख देख कर खुश हो रहे थे
कैमरे से फोटो निकाल रहे थे
कुछ सेल्फी लेने की कोशिश में
वही आ खडा हुआ मोरपंख बेचने वाला
बडे ध्यान से निहारता
संशय हुआ
सोच रहा होगा
किसी तरह यह मिल जाता
इसका शिकार कर डालता
पंखों को नोच डालता
बेचारा मोर उसे क्या मालूम
ऐसे कितने घात लगाए बैठे हैं
कितना क्रूर और स्वार्थी है इंसान
अपने आनंद के लिए
अपने लाभ के लिए
किसी की भी जान का दुश्मन
मोर बेचारे मरे पडे रहते हैं
उनके पंख नुचे हुए रहते हैं
कोई सजावट के लिए
कोई सर पर धारण करने के लिए
कोई पुस्तक में रखने के लिए
इस निरपराध जीव की हत्या
यह तो प्राणिमात्र के प्रति क्रूरता
कब तक करता रहेगा
यह महान मानव
मन कह रहा था
मत नाच रे मोर

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