Friday, 18 October 2019

जीवन एक मेला है

अकेले ही चले थे
कांरवा चलता रहा
कुछ मिलते गए
कुछ जुड़ते गए
जिंदगी भी चलती रही
कभी कुछ बिछुडे भी
तब कुछ नए भी जुड़े
कभी कुछ बिसुरे भी
वक्त के साथ अंदाज भी बदलता गया
कभी जो अपने थे
आज पराए होने लगे
दूर जाने लगे
किस्सा क्या
कुछ समझ न आया
हम तो वही थे
हम तो बदले न थे
हाँ वक्त जरूर बदला था
यही लोगों को रास न आया
सोचने पर समझ में आया
लोग आपसे नहीं
अपनी जरूरतो से जुड़ते हैं
जहाँ जरूरत खत्म
संबंध भी खत्म
कल आपके साथ
आज किसी और के साथ
यह जीवन व्यापार है
घाटा और मुनाफे के खेल है
दोस्त और संबंध सब इसी की उपज है
इसमें घाटे का सौदा कोई नहीं करना चाहता
गलतफहमी होती है
लोग साथ है
कोई साथ नहीं
अकेले ही आए थे
अकेले ही जाना है
इस मेले को छोड़ भीड में
सबको अकेले ही जाना है

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