जिस युवराज का राज्याभिषेक होने जा रहा था
माता कैकयी के रूप में नियति ने वह क्रूर खेला कि अयोध्या भी छोड़नी पडी
चौदह वर्ष तक दर दर भटकना पडा
राजा तो क्या सामान्य जन बन कर भी नहीं रह पाए अयोध्या में
राम विद्रोह कर सकते थे
प्रजा में प्रिय थे
योग्य और शक्तिशाली भी थे
ज्येष्ठ पुत्र थे
दशरथ के प्यारे थे
वे नहीं चाहते थे कि राम वन जाए
उन्होंने कहा भी नहीं
यह राम ही थे कि पिता के दिए वचनों का मान रखा
रघुकुल की प्राण जाय पर वचन न जाय
को कायम रखा
हंसते हुए वन को प्रस्थान किया
अगर वे ऐसा नहीं करते तब ????
परिस्थिति क्या होती
कोई नहीं जानता
शायद विद्रोह होता
मार काट होती
मौत के घाट उतारा जाता
पर राम ने ऐसा होने नहीं दिया
त्याग का रास्ता चुना
तभी भरत को भी यही करना पडा
अयोध्या सलामत रही
उसके टुकड़े नहीं हुए
परिवार में प्रेम बरकरार रहा
आज इसी दो राहें पर फिर राम की अयोध्या खडी है
परिणाम तो कोई नहीं जानता
कोर्ट में फैसला सुनाया जाएगा
अपना हक छोड़ दें
तब शांति
तब कब तक राम अपना हक छोड़ते रहेंगे
ऐसा न हो मंदिर निर्माण की सारी तैयारियां हो चुकी है
पत्थर तराशे जा चुके हैं
पूजा शुरू है
पर मंदिर निर्माण अधर में
बहुसंख्यक कहलाकर और बडे भाई की समझदारी ओढकर कब तक हिंदू धर्म को छला जाएगा
हमारा कलेजा भले छलनी हो जाय
पर शांति की दरकार तो हमी से है
अपने ही देश में विस्थापित है हमारे भगवान
और हम धर्मनिरपेक्षता का ढोल बजा रहे हैं
एक बार फिर इतिहास न दोहराया जाय
जब तक मंदिर बनेगा नहीं
आंशका तो रहेगी
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