टीका भी है धर्म का
टोपी भी है धर्म की
दोनों ही का स्थान सर पर
जहाँ बुद्धि का निवास
तब भी इतनी संकीर्ण सोच
पता है कि यह सब बेमानी है
असली धर्म तो इंसानियत है
व्यक्ति का ईमान है
यह सब तो प्रतीक बनाया हुआ है
वह भी इंसानी दिमाग की
यह उपज उसी की देन है
कब इससे ऊपर उठेगा
हर चीज को बाँटा जा रहा है
भगवान को तो पहले ही बाँट रखा है
इंसान को तो बख्श दिया जाए
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