सुबह हुई
चिडिया चहकी
सूरज निकला
चहल-पहल शुरू
दूध वाला ,पेपर वाला
अब असमंजस था
पेपर पढूं या न पढूं
ऐसा पहली बार हुआ
टेलीविजन चला नहीं सकती थी
इतवार के कारण छुट्टी
सब सो रहे हैं
आवाज होगी
पेपर हाथ में ले सोच रही थी
रात भर में कुछ और घट गया होगा तो
तब तो अखबार की खबर गलत हो गई
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का जमाना है
अब टेलीविजन भी नहीं
पहले मोबाइल देखे
ट्विटर एंव फेसबुक पर जाय
वही ताजा-तरीन घटना का पता चल जाएगा
अब जब तक सब समक्ष नहीं
तब तक विश्ववास नहीं
दलबदल का खेल चल रहा है
रातोरात कब क्या हो जाए
नेताओं और पार्टियों के असली चेहरे सामने आ रहे हैं
मुखौटा उतर रहा है
प्रजातंत्र बिसूर रहा है
जनता ठगी महसूस कर रही है
वह तो भोली है
राजनीति का खेल समझ नहीं पा रही है
बस यह कह रही है
पता नहीं क्या होगा
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