सीता का नाम राम के साथ सियाराम ,सीताराम
राम की शक्ति सीता
सीता बिना अधूरे राम
यह वही जनक दुलारी थी
मैथिली राजकुमारी थी
अयोध्या की भावी महारानी थी
जिसने सब त्याग कर राम के साथ वनगमन किया
रावण द्वारा हरने पर भी निश्चल रही
हार नहीं मानी
मृत्यु को गले नहीं लगाया
अग्नि परीक्षा भी देनी पडी
अयोध्या आने पर फिर आवाज उठी
उनके चरित्र पर ही संदेह किया गया
उन्होंने फिर वनगमन को स्वीकारा
बिना राम को दोष देते
वहाँ भी बाल्मिकी के आश्रम में अपने शिशुओ का लालन-पालन किया
गर्भवती थी वे
अयोध्या के भावी राजकुमार उनकी गोद में पल रहे थे
तब भी उन्होंने हार नहीं माना
एक गर्भवती औरत जिसके पति का पता नहीं
आश्रम में भी तो उंगलियां उठी होगी
अपनी पहचान गुप्त रखी
क्योंकि वह साधारण नारी नहीं थी
अयोध्या की महारानी थी
मर्यादा पुरुषोत्तम राम की पत्नी थी
इतना सहज नहीं होगा सब
अंत में एक माँ का धर्म भी निभाया
संतान को उनके पिता से मिलाया
उनका हक दिलाया
बाद में धरती माँ को गोद में समायी
शायद अब उनको यह निर्दय संसार रास नहीं आया
सब साथ छोड़ दे
पर माँ तो हर हाल में साथ निभाती है
वापस न अयोध्या जाना था
न राजा राम के पास
उसी माँ की गोद में
जहाँ से वह आई थी
हर विषम परिस्थितियों में साथ निभाने वाली सीता
को अब कुछ नहीं चाहिए था
राजा राम कुछ नहीं कर पाए
वह चली गई स्वेच्छा से
पर राम के साथ अपना नाम भी जोड़ गई
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