एक बात संमुदर से सीखी है मैंने
वह विशाल है
मर्यादित है
अथाह है
धैर्यवान है
वह त्यागवान है
सारी नदियां अंत में उसी में समाती है
वह उछला और उथला नहीं है
वह स्वयं जलता है भाप बनता है
मदमस्त हो अठखेलियां करता है लहरों के साथ
जो आए उसके किनारे पर
उसे सुकून और शांति देता है
पर सबसे बड़ी बात
वह किसी भी अनपेक्षित को स्वीकारता नहीं है
कूडा कचरा जो भी डाला
वह किनारे लाकर पटक देता है
पर हम कूडा कचरा इकठ्ठा करते रहते हैं
सालोसाल ,बरसों तक
इसने वह कहा
उसने वह कहा
इनको इकठ्ठा कर अपना दिमाग खराब करना
कूडेदान तो है नहीं दिमाग
समुंदर जैसे फेक देता है अवांछित
हम क्यों नहीं फेंक सकते
विशाल ह्रदय में यह तुच्छ बातें
कुछ शोभा नहीं देती
उनको सीधा बाहर का रास्ता दिखाना है
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