हाॅ मुझे मन मारने का शौक है
मैं औरत जो हूँ
न मन हो तब भी खाना बनाना है
घर को संभालना है
कहीं बाहर जाने का मन हो
कैसे जाए
घर पर कौन रहेगा
पिक्चर देखने का मन हो
तब अकेले कैसे जाऊं
कोई क्या कहेगा
होटल में खाना हो
तब भी वही समस्या
वह औरत जो अकेले घर संभाल लेती है
यहाँ वह मन मार लेती है
देर रात तक आना हो
नहीं यह कैसे हो सकता
सब कहेंगे
घर छोड़ अकेली घूम रही है
सबकी परवाह उसको
पर उसकी परवाह किसे नहीं
रात का बचा हुआ भोजन उसके हिस्से
वह सबके लिए गर्म बनाएंगी
स्वयं बासी खाएंगी
सबको परोसेगी
अपने बाद में खाएंगी
वह अन्नपूर्णा जो है
स्वादिष्ट भोजन और परिवार का पेट भरना जिम्मेदारी
घर संभालना भी
वह गृहलक्ष्मी जो है
न जाने कितनी उपाधियो से नवाजी जाती है
पर उसे याद है
वह औरत है
घर की धुरी है
पत्नी है
जननी है
इसी के इर्द-गिर्द उसका जीवन
उसका महत्व कोई समझे या न समझें
पर वह बखूबी समझती है
अपनी इच्छाओं की कुर्बानी देती है
उसके बिना सब तितर बितर
तब सबको सहेजना उसकी जिम्मेदारी
वह औरत जो है
उसी से परिवार
उसी से समाज
उसी से संसार
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