परिस्थितियां हमेशा हमारे अनुकूल हो
यह जरूरी तो नहीं
कभी हम जैसा चाहते हैं
वह होता नहीं
न भाग्य साथ देता है
न कर्म
ईश्वर भी रूठे हुए लगते हैं
हमारे अपने विवश होते हैं
हम निराश होते हैं
यह निराशा निरंतर घर करती जाती है
हमारे तन मन को बीमार कर डालती हैं
उदासी और अवसाद घेर लेते हैं
निराशावादी कभी सफल हो ही नहीं सकता
भले सब विपरित हो
तब भी आशा बनाए रखें
स्वयं पर
ईश्वर पर
भाग्य पर
कर्म पर
हमारा दिन भी आएगा
समय एक सा नहीं रहता
दशा दस साल बाद बदलती है
बारह साल बाद तो घूरे के दिन भी फिरते हैं
तब निराशा के घेरे में क्यों
अंधेरा चाहे लाख घनेरा हो
हर रात की सुबह तो होती ही है
आशा ही जीवन में चेतना का संचार करती है
आस रखिए
धीरज रखिए
धीरे-धीरे ही सही
वक्त तो बदलेगा
बदलना तो उसकी फितरत में है
वह हमेशा एक समान नहीं रहता
तब आशा के साथ प्रतीक्षा करें
भविष्य आपकी मुठ्ठी में होगा
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