कभी कभी चुप रहना पडता है
जान बूझ कर
अंजान बन कर
नजरअंदाज कर
मजबूर होकर
हर बार बोलना सही नहीं होता
उचित समय
उचित स्थान
उचित लोग
यह सब देखना पडता है
कभी अपनों की खातिर
अपनों से ही चुप रहना पडता है
कभी विपरित परिस्थितियों में भी
कभी अनावश्यक बातों में भी
किससे रार ले
कभी प्रेम और संबंध सलामत रहे
इसलिए भी चुप रहना पडता है
चुप रहना कोई गुनाह नहीं
हर बात का उत्तर देना आवश्यक नहीं
चुप अपने आप ही सबसे भारी है
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