बच्चे थे छोटे थे
परीक्षा देते रहते थे
क्लास दर क्लास
डरते रहते थे
पेपर कैसा आएगा
पेपर कैसा जाएगा
घर वालों का डर अलग
कक्षा में क्या प्रभाव रहेगा
रिश्तेदारो में
हमेशा जी जान से लगे रहते थे
सोचते थे कब यह जंजाल खत्म हो
कब जीवन व्यवस्थित हो
पर कहाँ पता था
यह इम्तिहान कभी खत्म नहीं होंगे
स्कूल - कालेज छूट गए
अच्छी नौकरी भी लग गई
शादी ब्याह ,बाल बच्चे भी हो गए
सब कुछ लगा
सुरलित चल रहा है
पर जिंदगी कहाँ छोड़ती है
वह तो ताउम्र इम्तिहान लेती है
बचपन गया
जवानी बीती
इम्तिहान अभी भी जारी है
अब तो लगता है
यही नियति है
कुछ बिना मेहनत के पास हो जाते हैं
कुछ जीवन भर एडिया घिसते रहते हैं
जब पीछे मुड़ कर देखते हैं
तब लगता है
जहाँ से चले थे
वही पर खडे हैं
बदला कुछ भी नहीं
बस समय आगे निकल गया
हम तो वैसे ही है
वहीं संघर्ष
वहीं हालात
शायद पहले से भी कठिन
सही है
बचपन छूट जाता है
इम्तिहान तो ताउम्र
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