याद आते हैं वह बीते पल
दोस्तों का संग
बतियाने में मशगूल
चाय की चुस्कियां
चार घूंट चाय
हजार बात
कटिंग पीकर कट जाता था समय
वह भी खडे खडे
समय का भान नहीं
चाय तो बहाना थी
बतियाने का अदद साधन
आज चाय की टपरी बंद
तब सब चर्चा भी बंद
चार लोग का इकठ्ठा होना गुनाह
अकेले क्या कर सकता है
बस इधर-उधर ताकना
उस पल को याद करना
एक हल्की सी मुस्कान आ जाना
कुछ बातें याद आ जाना
कुछ वाद विवाद याद आ जाना
चायवाला अपनी ही धुन में रहना
बस चाय को घोटते और छानते रहना
कभी पैसे देना
कभी उधार लगाना
फिर मिलने का वादा
इकठ्ठा होना
पर अबकी बार
वह बात नहीं
अब कब इकठ्ठा हो
यह न हम जानते
न और कोई
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