Thursday, 9 April 2020

हम नारी जो है

कुछ दिन बंद रहना पड रहा है
तब हो रही है मुश्किल
हम तो नारी है
हमेशा से बंदिनी
बंदिशो में ही रखा गया
कभी परदे में
कभी घर में
कभी ससुराल में
बस घरनी हम बनी रही
घर संभालने वाली
तब भी हम खुश ही रही
शिकायत नहीं रही
शिक्षा से वंचित
घूमने फिरने की आजादी नहीं
कर्तव्य के नाम पर बंदिशो का साम्राज्य रहा
बेटी ,बहन ,पत्नी और माँ के नाम पर
हमारा कर्तव्य हमें हमेशा याद दिलाया गया
कर्तव्य पालन भी किया
बंदिशो की पीडा भी सही
यह कोई एक - दो महीनों की बात नहीं
सारा जीवन ऐसे ही गुजरा है
कभी इज्जत के नाम पर
कभी समाज के नाम पर
कहने को तो अर्धांगनी
पर समानता का अधिकार कभी नहीं
समय बदला
हम बाहर भी निकली
आत्मनिर्भर भी बनी
तब भी अंदर और बाहर की जिम्मेदारी हमारी ही
हमको तो हर हाल में घर संभालना है
घर में रहना तो हमारी आदत में शुमार है
हमें उससे कोई तकलीफ नहीं
हाँ जिनको हो रही है
वह शायद  हमारी पीडा को समझ रहे होगे
कैसा गुजरता है
अभी तो जान का सवाल है
मजबूरी है तब
पर हम तो खुश रहे हैं
सदियों से
हम नारी जो है

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