चिंता और चिता
दोनों ही खतरनाक
चिंतन करना है सार्थक
पर चिंता नहीं
उससे तो कुछ हासिल नहीं
जो होना है
वह होगा ही
न आपके चाहने से वह बदल सकता है
न सोचने से
उसी सोच में तो अपने आज को भी भूल जा रहे हैं
न आज खुश हो पा रहे हैं
न पल को जी पा रहे हैं
बस मायूस हो जीते हैं
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