Saturday, 18 April 2020

सब पटरी पर आ जाएं

दिन पर दिन गुजरते जा रहे हैं
सब कुछ नहीं
नया कुछ नहीं
वहीं खाना
वहीं सोना
रोजमर्रा की आदत
जिंदगी के किताब के पन्ने पलटते जा रहे हैं
अलग सा कुछ नहीं
वही पुरानी कहानी
सब कभी भूतकाल में जा रहे हैं
कभी भविष्य काल में
भूतकाल की यादें
भविष्य काल का डर
सर घूम जाता है
सोच सोच कर
एक डर भी है समाया
पता नहीं क्या होगा
दिन गुजरता है
रात गुजरती है
सब यू ही तमाम होता है
क्या जिंदगी यही है
न करने को कुछ
बस सोचने को ही
इंतजार है
सब सामान्य हो
जीवन पटरी पर आ जाएं

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