आज सब मजबूर
फिर भी है किसान मजबूत
उसे इतना तो भरोसा है स्वयं पर
भूखे नहीं मरेगे
धरती माता इतना तो दे ही देगी
पेट तो भर ही देगी
नून रोटी मिल ही जाएंगी
किसी तरह परिवार का गुजर बसर हो ही जाएंगा
सब वापस अपने उसी जमी पर जा रहे हैं
विश्वास है गुजारा कर ही लेंगे
शहर में तो नौकरी नहीं
तब कुछ भी नहीं
रोज कमाओ
रोज खाओ
बीमार पड गए तो पगार कट जाएंगी
गाँव में तो यह बात नहीं है
अपने मन के राजा
फसल बो दी तब अन्न उपजेगा
सब्जी लगा दी तब बेल पर असंख्य लद जाएंगी
महीनों तक खुद खाएं औरों को भी खिलाएं
बगिया पूर्वजों ने लगाया
फल आज तक मिल रहे हैं
गाय नहीं बकरी ही पाल लेंगे
दूध का इंतजाम तो हो ही जाएंगा
शहर में काम करते हैं तब रूपया मिलता है
उसी से अनाज खरीदते हैं
गाँव में भी काम करते हैं
वहाँ पैसा तो नहीं पर अनाज मिलता है
धरती माता किसी तरह पेट जरूर भर देती है
अपनी संतान को भूखा नहीं रखती है
पिज्जा - बर्गर न मिले
लिट्टी-चोखा तो जरूर मिलेगा
इसी विश्वास के साथ फिर वही जा रहे हैं
जहाँ से आए थे
धरती माता अपने बच्चों को भूखा नहीं रखेंगी
कुछ न कुछ इंतजाम तो कर ही देगी
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