छोटे थे बच्चे थे
जब ग्रहण लगता था
तब कुछ नियमों को मन से माना जाता था
उपवास से लेकर स्नान ध्यान तक
बूढ़े बुजुर्ग उदास हो जाते थे
आज हमारे भगवान पर ग्रहण लगा है
उनको मुक्त होने के लिए यह सब करना है
फिर अमृत मंथन कैसे हुआ
चंद्र और सूर्य ने क्या किया
राहु और केतु ने क्या किया
विस्तार से वर्णन
फिर डोम आते थे मांगने
चिल्ला कर
दे दान छूटे ग्रहण
तब यथाशक्ति लोग कपड़े इत्यादि का दान देते थे
सब अपने घर की छतों या गैलरी में खडे रहते थे
देखने के लिए भी
देने के लिए भी
आज कितना बदल गया है
ठीक है
कुछ नहीं करना है तो सोते रहेंगे पूरा दिन
अंधविश्वास है यह
पर उस अंधविश्वास में भी एक विश्वास था
हम अपने प्रभु की मदद कर रहे हैं
श्रद्धा के साथ मदद का
वह भी उसकी जो ईश्वर है
तब इंसान की मदद कैसे नहीं करते
आज यह भावना लुप्त
समष्टिवाद से व्यक्तिवाद
कितना बडा संदेश था वहाँ
जब देने वाला और लेने वाला दोनों हाजिर
आज भी कानों में गूंजती है वह आवाज
दे दान छूटे ग्रहण
Hindi Kavita, Kavita, Poem, Poems in Hindi, Hindi Articles, Latest News, News Articles in Hindi, poems,hindi poems,hindi likhavat,hindi kavita,hindi hasya kavita,hindi sher,chunav,politics,political vyangya,hindi blogs,hindi kavita blog
No comments:
Post a Comment