मेरी उम्र क्या है
समझ नहीं आती
कभी बच्ची
कभी आजी
कभी प्रौढ़ परिपक्व
कभी जवान
सपनों की उडान
कल्पना में विचरण
जिद भी करती हूँ
गुस्सा भी दिखाती हूँ
समझदारी भी है
अनुभवों से भरी पडी हूँ
ऐसा करना ऐसा नहीं करना
वह तो मेरी समझ से परे
यह तो पता नहीं
कब क्या बन जाऊं
मेरे विचार से उम्र नहीं
मन विचरण करता
समय-समय पर
वह कभी बच्चा
कभी बूढा
कभी जवान
कभी समझदार बना देता
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