यह सुबह भी अजीब है
समय पर ही होती है
समय पर ही उठाती है
उठने वाले को कभी कभार आलस आ भी जाता
इसे नहीं आता
न यह सब भाता
सूरज की किरण के साथ
मुर्गे की बांग के साथ
चिडियाँ की ची ची
अल सुबह उठाती है
कहती है
अब तो बस करों
कितना सोओगे
कुछ काम पर लगो
मुझे देखों
मैं नियमित रूप से आती हूँ
प्रकृति के और भी जीव
तब तुम क्यों अभी तक अलसाये से हो
उठो और शरीर में स्फूर्ति ले आओ
सोते रहे तब कुछ नहीं हासिल होगा
जागो मानव प्यारे
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