कितने मिले कितने छूटे
कुछ साथ साथ चले
कुछ बीच में छोड़ गए
कुछ शुरुआती दौर में
कुछ मंझधार में
कुछ किनारे तक आते-आते
मैं तो चलता गया
बिना परवाह के
आखिर चलना तो मुझको ही था
अपने बल पर
अपनी मेहनत
अपने परिश्रम
अपनी इच्छा से
तब किसी को क्यों दोष दूं
वे तो राह के साथी
कुछ पल ही सही
साथ चले तो सही
आज जब पडाव पर पहुंचा हूं
तब लगता है
कुछ सहभागिता उनकी भी है
ज्यादा न सही थोड़ी ही
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