Tuesday, 15 December 2020

चलो फिर लौट चलें

चलो चले फिर लौट चलें
उन्हीं पुरानी राहों पर
अब नहीं लगता यहाँ मन
थक भी गई हूँ अब
अब सहा नहीं जाता
कुछ कहाँ भी नहीं जाता
कहें भी तो किससे
दिल खोले भी तो कहाँ
किसी पर विश्वास नहीं रहा
सबके सब लगते हैं फरेबी
करनी और कथनी मे असमानता
अगर अब नहीं तो कभी नहीं
दम घुटता है
स्वयं को ही भूल रही
स्वयं पर ही विश्वास नहीं
अपने लगते हैं बेगाने
बातें काटने को दौड़ती है
वह राह कभी छोड़ आई थी
आज याद आ रही है
मुश्किल भले रहतीं
आत्मसम्मान तो कायम रहता
आनादर सहना
अपनों द्वारा ही छले जाना
अपने हैं
इसलिए उनका मन न दुखे
तब कब तक अपने मन को दुखाते रहेंगे
अगर संबंध बोझ लगने लगे
तब उसको ढोने से अच्छा उतार दे
चलो फिर लौट चलें
उन्हीं पुरानी राहों पर

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