Tuesday, 15 December 2020

समंदर मुझे अपना सा लगता है

समंदर मुझे बहुत भाता है
इसके किनारे मुझे बुलाते हैं
कितना गहरा और अथाह
न जाने क्या-क्या लिए बैठा दिल मे
यह मुझे अपना सा लगता है
मैं भी न जाने क्या क्या छुपाए बैठा हूँ
सीने मे दफन किए बैठा हूँ
बाहर आने को वे मचलती है
तडपती है
पर मैं तो आह भी नहीं कर पाता
कूढता हूँ
सिसकता हूँ
जज्बातो को जब्त किए रहता हूँ
ऊपर से तो शांत
दिल मे अथाह तूफान लिए चलता हूँ
मैं ऐसा वैसा नहीं
कुछ भी स्वीकार करूँ
अनवांछित को तो दूर फेंक देता हूँ
सीने मे दफन सब राज
तब भी सीमा मे रहता हूँ
मेरी ज्यादा परीक्षा मत लो
नहीं तो सुनामी आ जाएंगी
तब बहुतेरे बह जाएंगे
जो मै नहीं चाहता
मैं उथली नदी नहीं
जो आपे से बाहर हो जाएं
मैं अगर थोड़ा भी हिल जाऊंगा
तब उथल-पुथल मच जाएंगा
मुझे मेरा खारापन भाता है
मिठास की जरूरत नहीं
यह खारापन ही औरों की जिंदगी मे मिठास भरता है
वाष्प बन कर उडता है
त्याग करता है
तब बहुत से लहलहाते हैं
मुझे कुछ कुछ समंदर अपना सा लगता है
यह मुझे बहुत भाता है

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