गाँव का मौसम सुहावना लगता है
नजदीक से देखें तो कितना भयावना लगता है
कब जाने प्रकृति का सितम बरस जाएं
सारी मेहनत पानी पानी हो जाएं
ठंडी की गुलाबी मखमली सर्द
कब ओले बन टपक पडे
खेत में खडी फसल पर लकवा मार जाएं
गर्म गर्म मौसम में नीम की ठंडी ठंडी हवा
कब नस्तर चुभोने लगे
सूखा और अकाल पड सब मुरझाने लगें
कभी ओला
कभी बरसात
कभी लू के थपेडे
ऊपर से कर्ज और भुखमरी
यही है असली कहानी
दूर से सब सुहावना लागे
पास जाएं तो खाएं दौड़े
तभी गांव हो रहे वीरान
शहर में बढ रही भीड़ की भरमार
आबादी बढी जा रही
हालात तो यहाँ भी कुछ ठीक नहीं
यहाँ आए थे उनको छोड़कर
यहाँ भी तो मौसम का कोई ठिकाना नहीं
यहाँ तो सब एक समान
न गर्मी न सर्दी न बरसात
बस बिताना है
पेट भर खाना है
जिंदगी और परिवार चलाना है
न यहाँ का न वहाँ का
गरीब और' गरीब
अमीर और अमीर
इनके बीच में है जो
वह भी पीस ही रहा
वह ठहरा मध्यमवर्गीय
घर का कर्ज
गाडी का कर्ज
एज्युकेशन लोन
लोन पर लोन
ले देकर महीने के आखिर में
वह भी हो जाता तनतनाह
तनख्वाह का करता इंतजार
तभी तो होगा महीने भर का इंतजाम
गाँव और शहर
हालत सभी की बदतर
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