तुमने बोझ ढोया है अपने कंधों पर
हमने जिंदगी को ढोया है
अपने सपने को ढोया है
हर बार फिसलता है
फिर चढाकर रख लेते हैं
इन कंधों पर
गिरने नहीं देते
भले दर्द से बोझिल हो
कराहते रहे
हाँ मगर हर हाल में ढोते रहें
यह तो दिखता भी नहीं है
कहाँ उतारे यह भी पता नहीं है
अंजान है इसकी राहें
कब और कहाँ
यह कोई नहीं जानता
बोझ एकबारगी ढो लेना आसान है
जिंदगी जब बोझ बन जाए
तब आदमी , आदमी से बेचारा बन जाता है
कब तक ढोता रहेगा
यह तो उसे भी नहीं पता
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