Friday, 4 December 2020

बोझिल जिंदगी

तुमने बोझ ढोया है अपने कंधों पर
हमने जिंदगी को ढोया है
अपने सपने को ढोया है
हर बार फिसलता है
फिर चढाकर रख लेते हैं
इन कंधों पर
गिरने नहीं देते
भले दर्द से बोझिल हो
कराहते रहे
हाँ मगर हर हाल में ढोते रहें
यह तो दिखता भी नहीं है
कहाँ उतारे यह भी पता नहीं है
अंजान है इसकी राहें
कब और कहाँ
यह कोई नहीं जानता
बोझ एकबारगी ढो लेना आसान है
जिंदगी जब बोझ बन जाए
तब आदमी , आदमी से बेचारा बन जाता है
कब तक ढोता रहेगा
यह तो उसे भी नहीं पता

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