एक वंश बिनु भईले हानि
के देइ चुरूवा भर पानि
सच है यह
बेटा बेटी एक समान
फिर भी बेटे की है मांग
सदियों चली आ रही परम्परा
कुछ तो होगी बात
ऐसे ही नहीं कुलदीपक कहलाता है
अपने साथ वंश का बोझ लेकर चलता है
सारा दारोमदार उसी के कंधों पर
बेटी विवश हो जाती है
वह किसी के अधीन होती है
बेटा विवश नहीं
वह अपनी इच्छा का स्वामी होता है
स्वतंत्र होता है
बेटा होता है तब गजब का विश्वास होता है
बेटी होती है तब एक डर समाया रहता है
उसके भविष्य के साथ-साथ अपने भविष्य का भी
कल कुछ हो गया
तब कौन देखेंगा
एक अनिश्चितता बनी रहती है
अंतिम समय में बिदा की बेला में
कांधा और दाग देने की जरूरत होती है
बेटा नहीं तब कौन ?,
भले बेटियां आगे आ रही है
योग्यता का परचम फहरा रही है
जो वर्जित था वह भी कर रही है
श्मशान से लेकर दाग तक
आखिरी क्रियाकर्म तक
फिर भी बेटा तो बेटा होता है
उसके रहते एक गजब का विश्वास रहता है
बेटी पर नाज होता है
बेटे पर गुमान होता है
ऐसे ही नहीं बेटा , बेटा होता है
वह दीपक है जो जलता है
पूरे खानदान को प्रकाशित करता है
सारा भार उसके ही कंधों पर
देखभाल से लेकर कांधा देने तक
और वह एहसान नहीं
उसका कर्तव्य निभाता है
बेटा , पोता , मामा , चाचा , ताऊ , फूफा
मौसा , जीजा , देवर , भतीजा न जाने कितने
पति और पिता तो है ही
हर रिश्ता निभाता है
जिम्मेदारियों का बोझ उठाता है
इसीलिए तो कहा जाता है
बेटा तो बेटा ही होता है
यह वह हीरा है जो सदा के लिए हैं
Hindi Kavita, Kavita, Poem, Poems in Hindi, Hindi Articles, Latest News, News Articles in Hindi, poems,hindi poems,hindi likhavat,hindi kavita,hindi hasya kavita,hindi sher,chunav,politics,political vyangya,hindi blogs,hindi kavita blog
No comments:
Post a Comment