हर सुबह होती है
अलसायी सी
उठने का मन नहीं करता
तब भी उठना पडता है
कामों को निबटाना है
चाय - नाश्ता का इंतजाम
भोजन - पानी का इंतजाम
सबको इन सबका इंतजार
कब इनके सामने सब हाजिर
सबकी अपनी-अपनी मौज
जिसको मन चाहे जो करें
कोई भजन कोई व्यायाम
कोई जाॅगिग तो कोई सोयें
हर रोज यही रूटीन
सबको गर्म खिलाते - खिलाते
कब ठंडा हो जाता है
जो बचता - खुचता
वह पेट में जाता है
यही सब करते करते
दोपहर से शाम
शाम से रात
दिन खत्म हो जाता है
रात को सोते समय ख्याल आता है
कल के खाने में क्या बनाना है
आज तो दिन गुजरा
अब कल देखों
रात में ही सुबह का प्लान बन जाता है
प्लान बनाते - बनाते कब ऑख लग जाती है
दूसरे दिन झटके से फिर वही सुबह आ जाती है
सबकी भोर सुहावनी
हमारी काम से भरी
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