जमीन पर ही पैर मेरा
ऊंचाई आसमां की मापता हूँ
मैं पंछी तो नहीं जो तुरंत उड जाऊं
हाँ आसमां को छूने की चाहत जरूर रखता हूँ
पंख तो नहीं है पास मेरे
इरादे बेशक अटल है
मैं तो वह परिन्दा हूँ
जो जमी पर रह आसमां की उडान भरता हूँ
राह में आएं कितने भी रोडे
तपते सूरज ने भी ऑख दिखाई
फिर भी हार नहीं मानी
सूर्य की किरणों को छूने की चाहत रखता हूँ
जहाँ पहुँचना आसान नहीं
वहाँ पहुँचना चाहता हूँ
हर असंभव को संभव बनाना चाहता हूँ
हार कर बैठ रहना यह स्वीकार नहीं
हाथों को ही पंख बना कर उडान भरना चाहता हूँ
जमी से ले आसमां को अपनी मुठ्ठी में करना चाहता हूँ
कामयाबी हासिल होगी
सफलता कदमों को चूमेगी
इतनी आशा और विश्वास मन में समाई
जीवन में हर रंग भरूंगा
अपने लिए ही नहीं औरों के लिए भी
बहुत कुछ करूँगा
जीवन व्यर्थ नहीं करूंगा
जीना सार्थक हो यह प्रयास होगा
जमीन पर ही पैर मेरा
ऊंचाई आसमां की मापता हूँ.
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