हम तो लिखते रहे
अपनी भावनाओं को कागज पर उतारते रहे
सोचा था कोई पढेगा
कोई समझेगा
पर लोगों के पास फुर्सत नहीं
सब अपनी ही मुफलिसी में व्यस्त
हर किताब का खरीदार नहीं मिलता
हर किरदार को समझने वाला नहीं मिलता
लेखक की लेखनी तो चलती है
कवि की कल्पना भी कब थमती है
भावना तो कभी मरती नहीं
वह तो युगों - युगों तक साथ चलती है
हर युग की छाप किताबों में छोड़ जाती है
यह बात दिगर है
हर लेखनी को वाहवाही नहीं मिलती
तब भी लेखनी तो किसी न किसी रूप में गतिशील रहती
वह अपना काम करती है
वक्त की नजाकत को भी समझती है
तभी तो न जाने कितनी बातें नजरअंदाज करती है
लिखना पेशा नहीं शौक होता है
उस शौक को पूरा करना है
कभी कागज के पन्नों पर
कभी मोबाइल पर
हाँ पर विराम न लिया
हर रोज कुछ न कुछ लिखा
अपने ही दिल को दिलासा दिया
कोई तो पढेगा
कोई तो समझेगा
हम तो लिखते रहे
अपनी भावनाओं को कागज पर उतारते रहे
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