अगर शिकवा - शिकायत नहीं
नाराजगी नहीं
गुस्सा नहीं
वह संबंध महज औपचारिकता से भरे होते हैं
अपनों के सामने मन खुलता है
कुछ कहता है
अधिकार जताता है
जहाँ इसमें मौन का वास हो जाय
समझो सब खत्म
क्या लगता है यह मेरा
क्यों मैं इसको बोलूं
जो करना हो करें
मेरी बला से
उसकी अपनी जिंदगी हमारी अपनी
जहाँ यह भावना आ गई
वहाँ दिल से वह इंसान मिट गया
दिल - दिमाग से उतर गया
तब वह आपका अपना नहीं
न आप उसके रहें
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