आज एक लाचार को देखा
शर्म से झुकी हुई नजर
अपराधबोध से ग्रस्त
वह जो उसने किया ही नहीं
उसका सुहाग उसका परमेश्वर
जिस पर नाज था
बडाई करते थकती नहीं
गुरुर मे रहती
नशे में धुत्त
मैले - कीचड़ मे लिपटा हुआ दरवाजे पर पडा था
कुछ अनाप - शनाप बक रहा था
मुहल्ले वाले तमाशबीन बने खडे थे
वह घसीट कर अंदर ले जा रही थी
उठाने पर न उठा पाई तब
नजरों को चुराए हुए
ऐसा तो आए दिन होता
पर पानी सर से ऊपर न जाता
घर में घुसते ही दरवाजा बंद कर लेती
मार खाती गाली सुनती
सुबह-सुबह मुस्कराती हुई दरवाजा खोलती
किसी ने कुछ बोल दिया तो उसकी खैर नहीं
छुपाती रहती
शराबी को देवता बताती रहती
उससे ही तो मान सम्मान जुड़ा रहता
पडोसियों का केंद्र बना रहता
एक एक गुणों का बखान करती
भले हो या न हो
पति को दुनिया का सबसे भला इंसान बताती
प्यार करने वाला बताती
आज वह कीचड़ से लथपथ द्वार पर पडा है
सारा पोल खोल बैठा है
असलियत सामने आ गई है
वह लजा गई है
शर्मशार हो गई है
सारी बनी बनाई इज्जत तार तार हो गई है
घसीट कर घर में ले जाने के अलावा कुछ नहीं कर पा रही
बेबस बच्चों को सहमा देख रही है
पडोसियों के व्यंग बाण झेल रही है
यह सब बर्दाश्त कर रही है
अपने पति परमेश्वर के कारण
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