हर रोज सुबह सूरज को उगते हुए देखना
हर रोज उनको अस्त होते भी देखना
उनका उदय हुआ है
अस्त होने के लिए
यही तो जीवन का सार है
जन्म लिया है
मृत्यु भी होनी है
जीवन की सुबह की सांझ भी होनी है
प्रकृति यही तो सिखाती है
मलाल कैसा
जीवन का प्रातःकाल और संध्याकाल में फर्क तो है
वैसा ही व्यवहार हर समय नहीं मिलेगा
तब अपेक्षा भी नहीं करना
नहीं तो दुख के सिवाय और कुछ नहीं
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