आज यादों के झरोखों में जरा सैर कर लिया
सबका हिसाब - किताब कर लिया
क्या फटा क्या उघडा
किसको सीया
किसका रफू किया
किसकी तुरपाई की
किसकी बखिया उधेड़ फिर सिलाई की
कुछ एकदम फट गए
उसे फेंक दिया
कुछ दाग लग गए
उनको रगड़कर धो दिया
कुछ बिल्कुल फट गए
पहनने लायक ही नहीं रहें
उन्हें फेंक दिया
कुछ पुराने थे
उन्हें दे दिया ।
जिंदगी की कपडे की सिलाई करते करते न जाने क्या - क्या किया
कभी नया था तब खूब इतराए थे
कुछ दिन बाद ही सब असलियत से सामना
इतना आसान नहीं होता
न जाने कितने जतन करना पडता है
तब जाकर यह सही सलामत रहता है
न जाने कितनी बार तुरपाई , बखिया , रफू किया
सुधारते रहें
जब ज्यादा फट ही गया
बहुत पुराना हो गया
तब उसको सहेजे रखना क्यों ??
जिंदगी में नयापन भरना है
तब पुराने को छोड़ना है
फटे तो फेकना है
सांप भी पुरानी केंचुली को उतार फेंकता है
तब हम क्यों यादों के भंवर में गोते लगाएं
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