मेरी पहचान क्या ??
मैं बडे पद पर कार्यरत हूं
मैं हाइअली एज्युकेडेट हूँ
मेरा ऑफिस में एक रूतबा है
कहीं अधीनस्थ कर्मचारी मेरे अंडर काम करते है
अच्छा बडा मकान है
गाडी है
सुख - सुविधा के सब साधन है
मैं परिवार के सदस्यों का भी ध्यान रखती हूँ
पूरे परिवारों का खर्चा चलाती हूँ
मैं आत्मनिर्भर हूँ
अपने दम पर
अपने शर्तों पर जिंदगी जीती हूँ
यह सब होने के बावजूद मैं बेचारी हूँ
तरस आता है लोगों को
कारण मैं सिंगल हूँ
कोई मुझे हेय की तो
कोई दया की दृष्टि से देखता है
कुछ ईष्या से देखते हैं
तो कुछ बातें बनाने को
कोई तोहमत लगाने को
ऐसा समाज जहाँ
जिंदगी की शुरुआत ब्याह से
खत्म ब्याह पर
डोली और अर्थी वाली धारणा
कितना भी सामर्थ्यवान कोई हो जाएं
यह सोच बदलने वाली नहीं
कपड़े और रहन - सहन से आधुनिक भले हो जाएं
विचारों से मार्डन नहीं हो सकते
समाज की संरचना और उसका संचालन करने वाले
कुछ ऐसे लोग
जो न आगे बढेंगे
न किसी को बढने देंगे
बस कूपमंडूकता को ओढे अपना अस्र और शस्त्र चलाते रहेंगे
हर संभव कोशिश रहती है इनकी
कब किसको गिराया जाएं
मजा आता है इनको
ये और कुछ तो कर नहीं सकते
हाँ लोगों की जिंदगी नर्क कर डालते हैं
समाज के इन तथाकथित ठेकेदारों की परवाह किए बिना
आगे बढना है
अपनी जिंदगी अपने शर्तों पर जीना है
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