Tuesday, 23 March 2021

वह तो सर्वव्यापी है

किससे कहूँ दिल की बात
नहीं यकीं किसी पर
अपनी भावनाओं को शब्दों में उकेरना
जो कह नहीं पाते
वह अपनी लेखनी से कहना
किस पर विश्वास करें
किस को अपने दुख - दर्द सुनाए
जब सैलाब उमड़ता है
तब वह कविता कहलाती है
उपजती है अंर्तमन से
अशांत मन को कुछ तो सुकून दे जाती है
शब्दों की तह में जाती है
बहुत कुछ अपने आप कह जाती है
वह शब्द नहीं होते
शब्दों में हम ही होते हैं
समझ सके तो समझ ले
न समझे तो न समझे
हमने तो उकेरी है भावना
वह शायद केवल हमारी नहीं
किसी और की भी तो हो सकती है
कविता जरूरी नहीं
कवि की ही हो
वह तो सर्वव्यापी है

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