प्रेम में कोई बंधन नहीं होता
जहाँ बंधन वहाँ प्रेम नहीं होता
बंदिशो में बंधा हुआ
वह प्रेम नहीं
जहाँ स्वतन्त्रता हो
जबरदस्ती थोपा हुआ न हो
अपने तरह से जीवन जीने की आजादी हो
अपनी इच्छाओं के लिए दूसरे पर हावी
अपनी मर्जी से चलने के लिए मजबूर
प्रेम में दूसरे को बदलना नहीं
स्वयं को ढालना पडता है
एक - दूसरे की भावनाओं की कदर करना पडता है
खुशी होती है
कुछ करने के लिए
अपना अस्तित्व अपना मान
यह छोडना पडता है
राधा को कान्हा और कान्हा को राधा बनना पडता है
एक - दूसरे के मिलन से राधेश्याम हो जाते हैं
तब वह अनुपम प्रेम होता है
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