Saturday, 24 April 2021

इंसान अब समझदार हो गया है

कितना अकेला हो गया  है
इंसान  अब समझदार  हो गया  है
दो गज की दूरी बना रहा है
मास्क से चेहरा ढक रहा है
पल - पल पर हाथ  धो रहा है
सेनेटाइज कर रहा है
जिस अल्कोहल  से घृणा  थी
अब वही  हाथ पर मल रहा है
गले मिलना और हाथ मिलाने से कतराने लगा है

पार्टी  और मौज मजा
दोस्तों  संग गपशप
अब भूली बिसरी याद बन गए हैं
शादी - समारोह में  अब गिन कर शामिल  करना है
अंतिम बिदाई में  भी दूर ही रहना है
भगवान  के  दर्शन  भी दुर्लभ  हो  गए हैं
भगवान  तो स्वयं  कपाटों  में  बंद हो गए हैं
कैसे और कब उनसे दुआ मांगे
वे तो ऑख से स्वयं  ही  ओझल हैं
पडोसी  - रिश्तेदार  से अब दूर ही रहना है
क्योंकि जान का खतरा है

अपनी जान सलामत  और दूसरों की  भी सलामत
यह बात ध्यान  रखना  है
जीना है तो  सब कुछ  करना पडेगा
वक्त  के साथ  चलना पडेगा
जान है तो जहान  है
यह बात हर किसी को पता है
तभी तो
कितना अकेला  हो गया है
इंसान  अब समझदार हो  गया है

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