कितनी भी बंजर हो धरती
फिर भी मैं उगना जानता हूँ
इतना भी कमजोर नहीं
हर मुश्किल राह में भी
अपना अस्तित्व कायम रखना जानता हूँ।
मुझे तोडना इतना आसान नहीं
गिर - गिर कर उठना
उठ कर संभलना
यह मुझे आता है
मैं कोई तिनका नहीं
जो फूंक मारने से उड जाऊं
मुझे जड तक जाकर अपनी पैठ बनाना आता है
नहीं किसी सहारे की
नहीं खाद - पानी की
मैं अपने आप को ही तैयार करता हूँ
उखाड़ने वालों की कोशिश को हर बार नाकाम करता हूँ
किसी न किसी तरह फिर उग ही आता हूँ
मैं कोमल हूँ पर कमजोर नहीं ।
No comments:
Post a Comment