Saturday, 8 May 2021

गया बचपन

बचपन तो कब का खो गया था
जाने कहाँ  चला गया था
बस यादें  बाकी थी
जैसा भी था
बचपन तो प्यारा ही था
न ही उसमें  ख्वाब बडा बडा था
बस छोटे छोटे सुहावने  सपने थे
देखते और भूल जाते थे
नहीं  पता था
सपनों  की  दुनिया  भी अलग होती है
वहाँ  परियों  और राजा - रानी  की कहानी  नहीं  होती
जिंदगी  इतनी सरल भी नहीं  होती
बचपन सरल होता है
नकली भी असली लगता है
जीवन  की  असलियत  कुछ  और  होती है
जब बचपन करवट लेता है
तब जीवन  वास्तविक  शुरू  होता है
आटे - दाल का भाव  पता चलता है
रोटी का महत्व  पता चलता है
अपने को तपाना  पडता है गर्म  भट्टी में
तब जाकर  कहीं  सोना निखरता है
पर सबके नसीब  में  यह भी नहीं  होता
जिंदगी  भर तपने के बाद भी रीता रह जाता है
सपने अधूरे रह जाते हैं
किस्से - कहानियों  की बातें बेमानी  लगती है
राजा - रानी की कहानी  , कहानी ही रह जाती है
एक प्यादे की हैसियत  हो जाती है
वह समय कभी आता  ही नहीं
जैसे गया बचपन कभी लौटता नहीं  ।

No comments:

Post a Comment