सुबह सुबह चिडियाँ बोली
ची ची ची ची
सोना था हमको
पर यह कहाँ मानने वाली
अपनी आदत से बाज आने वाली
है छोटी सी
चिचियाती है तेज सी
सुबह- सुबह ही उठती है
इधर उधर डोलती हैं
खूब आवाज करती है
जिद्दी है
आखिर सबको जगा कर ही मानती है
कोई सोता
यह इनको नहीं भाता
सुबह सुबह ही आती हैं
यहाँ वहाँ और पेडो पर बैठ चहचहाती है
खुशी में डोलती है
सुरीली संगीत छेडती हैं
अन्न का दाना मिलता
उसको चोंच में उठा फुर्र से उड जाती है।
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