अभी तक भटकाव जारी है
तलाश है मंजिल की
वह आती ही नहीं
दूर से दिखती है
पास आते आते गायब हो जाती है
फिर कहीं दूर चली जाती है
हम हसरत से निहारते रहते हैं
वह ठेंगा दिखाती रहती है
मन मसोस कर रह जाते हैं
कब तक पटरी पर आएगी
कब यह भटकाव खत्म होगा
बस बहुत हो चुका जिंदगी
अब तो रहम कर।
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